ये हैं 364 साल की ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा एक महीने की कड़ी मशक्कत के बाद होती है तैयार
बैतूल:- ईश्वर की भक्ति के साथ प्रकृति की सेवा कैसे की जाती है इसकी सबसे बड़ी मिसाल है बैतूल का रावत परिवार जो सन 1660 से यानी 364 बरसों से लगातार पूरी तरह इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाकर स्थापित करते आ रहे हैं । खास तरह की हरी मिट्टी ,फलों,सब्जियों, प्राकृतिक तरीकों से घर पर बनाए गए रंगों और सोने चांदी के साढ़े तीन सदी पुराने जेवरातों से सजी इस गणेश प्रतिमा के दर्शन करने हजारों लोग आते हैं । गणेशोत्सव और अन्य त्यौहारों जो प्रतिमाएँ बिकती हैं वो हो सकता है कि मिट्टी से बनी हों लेकिन पूरी तरह से ईको फ्रेंडली नहीं होतीं । प्रतिमाओं पर साज सज्जा के लिए केमिकल युक्त रंग और प्लस्टिक या कांच से बनी चीजों का इस्तेमाल होता है लेकिन बैतूल जिले की नगरपंचायत बैतूल बाजार का रावत परिवार इस मामले में पूरे देश के लिए एक मिसाल है । रावत परिवार के पूर्वज सैनिक के रूप में लगभग 400 साल पहले उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले से बैतूल आकर बसे थे । रावत परिवार ने गणेश उत्सव में सौ फीसदी ईको फ्रेंडली प्रतिमा बनाकर स्थापित करने की शुरुआत 364 साल पहले 1660 में कई थी ।और तब से आज तक हर साल रावत परिवार के सदस्य एक महीने की कड़ी मेहनत के बाद ये खास गणेश प्रतिमा बनाकर स्थापित करते हैं । प्रतिमा के लिए एक पहाड़ी से खास हरी मिट्टी को लाकर उसे प्रतिमा बनाने के लिए तैयार किया जाता है । लेकिन सबसे खास होता है प्रतिमा पर रंगरोगन और सजावट का काम । रावत परिवार के सदस्य भिंडी ,अभ्र्क ,सिंदूर, कुमकुम ,मिट्टी और अन्य प्रकृतिक फूल पत्तियों से रंग तैयार करते हैं और इन्ही रंगों का इस्तेमाल प्रतिमा में किया जाता है । सजावट के लिए कागज का इस्तेमाल होता है वहीं रावत परिवार की विरासत साढ़े तीन सदी पुराने सोने चांदी के जेवरात भगवान गणेश की इस खास प्रतिमा की रौनक में चार चांद लगा देते हैं । रावत परिवार के सदस्यों का कहना है कि इस प्रतिमा से उनकी छह पीढ़ियों के इतिहास जुड़ा है और अब आगे परिवार के युवाओं की जिम्मेदारी है कि वो इस परम्परा को इसी तरह आगे बढाने का प्रयास करें ।